अध्याय 3- तुलसीदास
कवि परिचय
'रामचरितमानस' जैसे अमर महाकाव्य के रचयिता महात्मा गोस्वामी तुलसीदास भारतीय काव्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं जिनकी आभा से सारा भारत आज भी जगमगा रहा है।
जीवन-परिचय-तुलसीदास का जन्म 1543 ई. के लगभग राजापुर (यद्यपि यह तिथि और स्थान दोनों विवादास्पद हैं) में हुआ था। बचपन में उन्हें रामबोला कहा जाता था। माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम दुबे था। तुलसी का विवाह रत्नावली से हुआ था।
तुलसी का जीवन घोर संघर्ष की गाथा है। परिवार द्वारा परित्यक्त तुलसी का पालन-पोषण चुनियाँ नामक एक दासी द्वारा हुआ था। सूकरखेत में उनका विद्यारम्भ हुआ, शेष सनातन (राजा) ने उनको दीक्षा दी। तुलसी ने वेद, षट्दर्शन, इतिहास, पुराण, स्मृतियाँ, काव्यादि की शिक्षा काशी में 15 वर्ष तक प्राप्त की थी।
शिक्षा पूर्ति के बाद कथावाचक बने। दीनबन्धु पाठक ने अपनी पुत्री रत्नावली से उनका विवाह कर दिया, यात्रा के शौकीन रहे और फिर काव्य रचना आरम्भ कर दी। तुलसी के 12 ग्रन्थ माने जाते हैं।
साहित्यिक रचनाएँ- (1) रामलला नहछू, (2) वैराग्य संदीपनी, (3) बरवै रामायण, (4) पार्वती मंगल, (5) जानकी मंगल, (6) रामाज्ञा प्रश्न, (7) दोहावली, (8) कवितावली, (9) गीतावली, (10) श्रीकृष्ण गीतावली, (11) रामचरितमानस, (12) विनयपत्रिका। इसके अतिरिक्त भी कुछ ग्रन्थ हैं जिनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है।
तुलसी का व्यक्तित्व विलक्षण था। रूपवान, विनम्र, मृदुभाषी, गम्भीर तथा शान्त स्वभाव के व्यक्ति थे।
तुलसी एक विलक्षण महाकवि हैं, जिनका काव्य भाव, भाषा चिन्तन का संगम है जिस पर हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान को गर्व है, समाज और संस्कृति पर आज भी तुलसी की महाछाप है। उन्हें सगुण काव्य की रामभक्ति काव्यधारा का शीर्ष कवि माना जा सकता है। उनका मानस हिन्दी का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। यह उनकी ही प्रतिभा थी कि वे अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में समान अधिकार से काव्य रचना कर सके और सफलतापूर्वक कर सके। उनका काव्य, काव्य-कौशल का उत्कृष्टतम नमूना है।
पद का सारांश
1. यह पद विनयपत्रिका का पद है। तुलसी ने श्रीराम प्रभु की सेवा में एक पत्रिका भेजी थी। उसमें वे माता सीताजी से सिफारिश कराना चाहते हैं। हे माता अगर कभी सुन्दर अवसर या सुयोग सुलभ हो सके तो आप प्रभु श्रीराम को मेरी याद दिला देना। पर यह भी ध्यान रखना मेरे कष्टों की कथा अवश्य सुना देना। यह भी बताना वह (तुलसी) सब प्रकार से दीन है, अंगहीन भी है, क्षीण-मलीन भी है और पूर्ण पापी भी है। वह इतना निकम्मा है कि वह आपका नाम ले-लेकर अपना पेट भरता है और आपका दास भी कहलाता है। हो सकता है, श्रीराम यह पूछें कि यह कौन है? उस समय मेरी सारी दशा का वर्णन करते हुए मेरा नाम भी बता देना। हो सकता है कृपालु राम जब मेरी यह हालत सुनेंगे तो मेरी बिगड़ी भी बन सकती है। हे माता जानकी जग की जननी आपको अपने जग के वासियों की सहायता करनी चाहिए, तुलसी की कामना है कि हे नाथ वह आपके गुणों का गान करके ही इस संसार से तर जायेगा।
2. तुलसी एक विभुक्षित भिखारी के रूप में श्रीराम से अपनी भूख शान्त करने के निमित्त भक्ति सुधा रूपी सुन्दर पकवानों की माँग कर रहे हैं।
आज प्रातः से ही आपके द्वार पर अड़ा बैठा हुआ में गिड़गिड़ाकर माँगने वाले की भाँति रिरिहा रहा हूँ। मुझे मात्र आपके दर्शन रूपी कौर (एक टुकड़ा) की आवश्यकता है और कुछ न चाहिए। कलयुग में भयंकर अकाल पड़ चुका है, प्रत्येक रूप में दुर्व्यवस्था ही दिखायी पड़ रही है। मनुष्य अधोकर्मा होकर भी बड़े स्वप्रीति मंडित है। मानी कोढ़ में खाज हो गयी हो।
वे कहते हैं हृदय में अत्यन्त भयभीत होकर मैंने दयाशील साधुजनों से इसका उपाय जानना चाहा, क्या मेरे जैसे पापी हेतु भी कोई शरण है, उन्होंने राम जी का नाम बताया। दैत्य तथा दारिद्रय टालने के लिये कृपासिन्धु श्रीराम तत्पर रहेंगे, हे दशरथ पुत्र श्रीराम आप भक्त शिरोमणि हैं। मैं जन्म-जन्म का भूखा भिखारी हूँ और आप दीनानाथ हैं। तुलसीदास जैसा भूखा भक्त द्वार पर बैठा है, उसे आप भक्तिसुधा रूपी सुस्वादु छककर भोजन जिमाइये।
पाठ प्रश्न उत्तर ✅
✳️Q 1. 'कबहुँक अंब, अवसर पाइ।' यहाँ 'अंब' संबोधन किसके लिए है? इस संबोधन का मर्मस्प्ष्ट करें।
2. प्रथम पद मे तुलसी ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है, लिखिए ।
उत्तर- प्रथम पद में तुलसी अपना परिचय देते हुए कहते है कि वे श्रीराम के दासी के भी दास है। वे दीन-हीन दशा में है, उनके शरीर के अंग भी ठीक तरीके से कार्य नहीं करते। वे बहुत दुर्बल है। वे मैले-कुचैले रहते है तथा पापों में लिप्त रहते है। वे हमेशा प्रभु राम के नाम को याद करके उदरपुर्ति करते है।
3. अर्थ स्पष्ट करे-
(क) नाम लै भरै उदर एक प्रभुदास कहाइ-दासी-
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति तुलसीदास द्वारा रचित 'पद' से लिया गया है। तुलसीदास जी कहना चाहते है कि माता सीता श्रीराम प्रभु से कहे कि वह आपकी दासी के भी दास है, आपके नाम का स्मरण करते हुए अपनी उदरपूर्ति करता है
(क). कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कसाजु ।
नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ॥
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति तुलसीदास द्वारा रचित 'विनय पत्रिका से लिया गया है। तुलसीदास कहते है कि इस भयंकर कलिकाल मे बड़ा ही अकाल पड़ा हुआ है और थति असहाय है । वैसे मै तो अधम (निच) व्यक्ति हूँ और मेरी अभिलाषा बहुत बडी है यानि छोटी मुँह बड़ी बाते करता हूँ।
(ग) पेट भरि तुलसिहि जेंवाइय भगतिसुधा सुनाजु- ।
उत्तर - तुलसीदास श्रीराम से कहते है कि आपसे प्रार्थना है कि आप मुझे अपनी भक्ति सुधा जैसे अच्छे भोजन की पेट भरकर भिक्षा दीजिए यानि मुझे जी भरकर अपनी भक्ति प्रदान कर दीजिए, जीससे मेरा मन इधर-उधर न भटके ।
4. तुलसी सीता से कैसी सहायता माँगते है?
उत्तर- तुलसी सीता से वचनो से ही सहायता मांगते है और माता सीता से कहते है कि यदि प्रभु मेरा नाम, दशा पुछे तो यह बता देना कि दीन-हीन निर्बल हूँ और उन्हीं का नाम लेकर अपना पेट भरता हूँ।
5. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते है?
उत्तर- क्योकि तुलसी जी श्रीराम के अधिक निकट है और जिनके साथ हृदय का गहरा संबंध हो, उनसे कुछ माँगा नही जाता है, क्योकि ऐसा करने से संकोच होता है। इसिलिये वो माता सीता से आग्रह करते है। वैसे भी माता श्रीराम कि अर्धांगिनी है, तो वो उनसे खुलकर बात कर सकती है। लेकिन तुलसीदास माता से भी कहते है कि उचित अवसर देख कर ही उनके बारे में बात करे
6. राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है ?
उत्तर- राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का कारण उनकी श्रीराम के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास है। तुलसी को यह विश्वास है कि प्रभु श्रीराम सभी के दुख दूर करने वाले है। उन्होने सभी के कष्टो को दूर करने के लिये नर शरीर धारण किया है। वे सभी गुणों से युक्त है। जब भी वे अपने भक्तो को दुखी देखते है तो उनके सब दुख दूर कर देते है। इसप्रकार तुलसी को पूर्ण विश्वास है कि श्रीराम उनके दुख भी दुर करेंगे।
7. दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है, लिखिए ।
उत्तर- दूसरे पद मे तुलसी ने अपना परिचय गिड़गिडाकर भीख माँगते भिखारी के रुप में दिया है। वे राम से कह रहे है कि हे प्रभु श्रीराम मै सुबह से आपके द्वार पर बैठा आपकी भक्ति का भीख मांग रहा हूँ। वैसे भी मै जन्म से ही भीखारी हूं।
8. दोनो पदो मे किस रस कि व्यंजना हुई है ?
उत्तर- दोनो पदो मे भक्ति रस कि व्यंजना हुई है।
9. तुलसी के हृदय में किसका डर है ?
उत्तर- तुलसी के हृदय मे यही डर है कि यदि उनके बारे में माता सीता श्रीराम से चर्चा नहीं की तो वे इस भवसागर से कैसे मुक्ति प्राप्त करेंगे? वे पुनर्जन्म नही चाहते है, वे केवल मुक्ति चाहते है। यह तभी संभव है जब सीता माता उनके बाते मे श्रीराम से कुछ कहेंगी।
10. राम स्वभाव के कैसे है, पठित पदो के आधार पर बताइये ।
उत्तर- राम स्वभाव से कारुणिक है। वे अपने भक्तो पर हमेसा कृपादृष्टि बनाये रखते है। उनका यश चौदहो भुवनो मे जगमगा रहा है। श्रीराम शम, दम, दया, सत्य आदि गुणो से युक्त तथा परम दानी है।
11. तुलसी को किस वस्तु की भूख है ?
उत्तर- तुलसी को जन्म से ही श्रीराम की भक्ति की भूख है। वे श्रीराम से कहते है कि हे प्रभु। आप मुझे भक्ति रुपी अमृत के समान सुंदर भोजन पेट भरकर खिला दीजिए। यानि कि जी भरकर अपनी भक्ति प्रदान कर दीजिए, जिससे मेरा ध्यान इधर-उधर न भटके ।
12. पठित पदो के आधार पर तुलसी की भक्ति भावना का परिचय दीजिए ।
उत्तर- तुलसी की भक्ति की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे राम के सगुण रूप के भक्त थे। तुलसी की भक्ति मे अटल गहराई थी। वे श्रीराम के प्रति पूर्ण समर्पित थे। वास्तव में तुलसी एक सन्त थे। इसलिए उनकी भक्ति सहज एवं सरल थी।
13. 'रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु। यहाँ 'और' का क्या अर्थ है ?
उत्तर- यहाँ 'और' का अर्थ है- "बहुत कुछ अर्थात तुलसी श्रीराम से बहुत कुछ पाने की हठ नही कर रहे है, वे तो केवल उनकी दया (अनुकम्पा) का एक टुकड़ा मात्र ही पाना चाहते है।
14. दूसरे पद मे तुलसी ने 'दीनता' और 'दरिद्रता' दोनों का प्रयोग क्यों किया है ?
उत्तर- दूसरे पद में तुलसी ने 'दीनता' और 'दरिद्रता' दोनों का प्रयोग इसलिए किया है क्योकि उन्हें मालुम है कि उनकी दीन अब था और दरिद्रता को भगवान राम ही दूर कर सकते है। समय की पर्सि थति को दिखलाने के लिये प्रभु की महिमा के लिये तुलसी ने दीनता और दरिद्रता शब्द का प्रयोग किया है।
15. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों मे लिखिए ।
उत्तर- प्रथम पद मे तुलसीदास सीता जी को माँ कहकर संबोधित करते है। वे कहते है कि हे माँ! जब कभी उचित अवसर मिले तो कोइ प्रसंग सुनाकर प्रभु श्रीराम को मेरी इस दयनियर्सथति की याद दिलाना और प्रभु से बताना कि आखिर तो मै उनकी दासी का ही तो दास हूँ. मुझपर वो कृपा करे। उनके ही नामो के स्मरण से मै अपना पेट भरता हूँ। तुलसी प्रभु श्रीराम को अपनी दयनीय थति को बताकर अपनी बिगड़ी बात बनाना चाहते है।
BY- ANU SIR (PATNA)// SCIENCE SANGRAH YOUTUBE CHANNEL.
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